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Ekadashi एकादशी, पापाङ्कुशा एकादशी पंचक आरम्भ

हम त्रिशंकु

हम त्रिशंकु


हम त्रिशंकु

मक्खन लाल हण्डू

हम

आकाश से लुढ़क कर

खजूर में अटके त्रिशंकु पंडित हैं।

शासन के अनियंत्रित,

कश्मीरी आतंकवाद ने खदेड़ दिया;

सहस्राब्धि पुरातन पुरखों की

तपोभूमि से।

विकट-विति झेलकर

आश्वस्त हो निकले थे,

कि,

भारतीय जनमानस विचलित हो

हमारे धर्मयुद्ध में कृष्ण हो जाएगा;

पर हाय!

एक ओर,

दुष्प्राण-शासन स्वार्थ कीलि पर खड़ा,

हमारे धकियाने वाले को ही

लाडता-दुलारता रहा आया है,

हमारे उदात्त अस्तित्व को नकारता रहा आया है।

और दूसरी ओर

भारतीय जन-मानस अपने में मस्त-व्यस्त,

हमारी त्रासदी की रेंगती जूं को

महसूस कर

मात्र खुजा कर ही,

इति श्री करता है।

अपमान-तिरस्कार का यह आतंक

हमें यहां भी जकड़ कर

विकटता से आक्रांत करता रहा।

शिकवे गिले की गुंजाइश नहीं;

अपनी विकीर्ण त्रासदियों को भी,

यह मानस,

नेताओं की धौंसदार वादों

और,

भारतीय-व्यथा निमित्त,

मगरमच्छी आंसों बहा

लच्छेदार भाषणों के झांसों में,

आकर,

सारे राष्ट्र को रपटने को बढ़ रही है,

यह जाग्र-निद्रित मानस,

कपूतसदृश्य नेत्र मूंदें बैठा है।

पर,

हमारा लक्ष्य हमें,

निद्रित रखने की स्थिति में,

कदापि नहीं है।

बस खड़े हो जाना है,

जति रहना है कि,

यह अवसर

मरकर, खपकर,

बहु आयातित आंक कर

लेखनी व बुद्धि की,

उलट के पिल पड़ना है।

शासन तंत्र का काया कल्प कर,

हाथ से फिसल न जाए,

और हम हाथ मलते रहें।

अपना युद्ध हमें स्वयं लड़ना है।

अपनी संख्या को,

उतिष्ठित हो जाना है।

करवाल व ढाल लेकर,

सम्भवतः,

भारतीय जन-मानस भी उत्तेजित हो,

हमारे शिवरों में लैस होकर आए,

सम्मिलित हो जाए:

राष्ट्र-रिपुओं का मर्दन,

और;

स्वार्थी, शिला हृदय, दुष्प्राण,

एक नव भारत की,

नींव डाल दे।

तथास्तु!

अस्वीकरण:

उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार अभिजीत चक्रवर्ती के व्यक्तिगत विचार हैं और कश्मीरीभट्टा .इन उपरोक्त लेख में व्यक्तविचारों के लिए जिम्मेदार नहीं है।

साभार:- मक्खन लाल हण्डू एंव 1996 नवम्बर कोशुर समाचार

 

Makhan Lal Handoo