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Ekadashi एकादशी, पापाङ्कुशा एकादशी पंचक आरम्भ

​​​​​​​वक्त बिखर गया

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वक्त बिखर गया

अन्नपूर्णा कौल

 

सब कश्मीरी पंडित बिखर गए हैं

अपनी जगह से हिल गए हैं

उनका भी कोई ठिकाना बनाओ

उसका भी कोई नाम रखाओ

शरणार्थी बन कर रह गए हैं

सबको मिल कर साथ रहना है

एक दूसरे का कहना मानना है

 

अपनी पीढ़ी को मातृभाषा सिखाते हैं।

अपनी भाषा का मान सम्मान रखते हैं।

कश्मीर का ऐतिहासिक सबक बतलाते।

इससे उनको ज्ञान दिलाते हैं।

अपनी पहचान को कायम रखते हैं

 

खाली निकल पड़े थे अपने जहाँ से

किस ओर जाना है कोई आवाज न आई कहीं से

जो एक बार चले जाते

वो दिन लौट के कहाँ आते

उन दिनों को याद कर के दर्द होता है सीने में

कोई मजा नहीं अब जीने में

घेरे रहते हैं हमें सवालों के सवाल

वक्त क्यूं नहीं देता कोई भी जवाब

जख्म है इतना गहरा

कोई भी उसे भरता नहीं

लौटने वाला रास्ता अब नजर आता नहीं।

अस्वीकरण:

उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार अभिजीत चक्रवर्ती के व्यक्तिगत विचार हैं और कश्मीरीभट्टा .इन उपरोक्त लेख में व्यक्तविचारों के लिए जिम्मेदार नहीं है।

साभार:- अन्नपूर्णा कौल एंव दिसम्बर 2022, कॉशुर समाचार