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Ekadashi एकादशी, पापाङ्कुशा एकादशी पंचक आरम्भ

Adi Shankaracharya आदि शंकराचार्य

Adi Shankaracharya आदि शंकराचार्य

आदि शंकराचार्य का नाम ज्ञान की साक्षात् मूर्ति के रूप में लिया जाता है। उल्लेख आता है कि एक बार एक जिज्ञासु उनसे मिलने के लिए पहुँचा। उसने शंकराचार्य से प्रश्न किया “दरिद्र कौन है ?” आचार्य शंकर ने उत्तर दिया- "जिसकी तृष्णा का कोई पार नहीं, वही सबसे बड़ा दरिद्र है।" उस जिज्ञासु ने पुनः प्रश्न किया- "धनी कौन है ?" शंकराचार्य बोले– “जो संतोषी है, वही धनी है। संतोष से बड़ा धन दूसरा नहीं है।" जिज्ञासु को पुनः जिज्ञासा उभरी - "वह कौन है, जो जीवित होते हुए भी मृतक के समान है ?" उन्होंने उत्तर दिया - "वह व्यक्ति, जो उद्यमहीन है और निराश है, उसका जीवन एक जीवित मृतक की भाँति है। "

आदि शंकराचार्य के ये वचन मनुष्य के आंतरिक उत्कर्ष के लिए सर्वथा मूल्यवान हैं । मनुष्य अपार तृष्णाओं को पार करने के प्रयत्न में दरिद्रता को प्राप्त करता है और संतोष धन को पाते ही ऐसे खजाने का स्वामी हो जाता है, जो कभी चुक नहीं सकता।

साभारः- सितंबर, 2012, अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या - 23