Marut Defeated मरुत ने हार

Marut Defeated मरुत ने हार

मरुतदेव क्रुद्ध होकर बोले-“ओसकणों? तुम्हें हमारा प्रतिरोध करते भय नहीं लगा, नष्ट करके रख देंगे तुम्हें, नहीं तो रास्ता छोड़कर अलग हो जाओ।”

ओसकण हाथ जोड़कर बोले-"महापुरुष / जब तक आप हैं, तब तक हम नष्ट कैसे हो सकते हैं। हमारा तो जन्म ही आपसे हुआ है।” इतना कहने पर भी मरुत का क्रोध न गया। बात कुछ भी नहीं थी, अहंकार मात्र था, सो ऐसे शांत कहाँ होता | मरुतदेव चले, वेग से आक्रमण किया। ओसकण झरकर भूमि में जा गिरे, पर वायुदेव की अंतः शीलता को छूकर दूर्वादलों में अन्य ओसकण झलकने लगे। वायु ने पीछे मुड़कर देखा तो उसे अपनी पराजय पर लज्जा आई। उमड़-घुमड़कर सब तरफ से उसने प्रयत्न किया, पर ओसकण कम न हुए।

काश ने यह देखकर कहा- "व्यर्थ क्यों खीजते हो पवमान बलिदान की शक्ति ही कुछ ऐसी है कि एक नष्ट होता है तो पीछे एक हजार तैयार हो जाते हैं। ऐसा न होता तो संसार में नेकी, धर्म और भलाई जिंदा कैसे रह पाते?"

मरुत ने हार मान ली और तब से ओसकणों को नीचा दिखाना उसने बंद कर दिया।

साभारः- जनवरी, 2006, अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या - 06