Selfish स्वार्थी
एक चींटी कहीं से गुड़ का ढेला पा गई। उसे उसने अपने दुर्ग में बंद कर लिया। प्रतिदिन चुपचाप थोड़ा सा गुड़ खा लेती, दुर्ग में और भी कर्मचारी थे, उनमें से एक को भी रत्ती भर टुकड़ा न देती।
रानी चींटी को एक दिन पता चल गया, उसने सब चींटियों को आदेश दिया। वे घुस पड़ीं और उस चींटी का सारा गुड़ छीनकर न केवल खा गईं, वरन उसे चोरी के अपराध में बाहर निकाल दिया। चींटी अपनी स्वार्थपरता पर दुःख करती जिंदगी भर वैसे ही अकेली मारी-मारी फिरी, जैसे स्वार्थी मनुष्य जीवन भर अकेलेपन का कष्ट झेलता है। उसका कोई हमदर्द नहीं होता।
साभारः- जनवरी, 2006, अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या - 16