Pigeon’s Pride कबूतर का अहंकार

Pigeon’s Pride कबूतर का अहंकार

बात उस जमाने की है, जब कबूतर झाड़ियों में अंडे दिया करते थे। लोमड़ी आती और उनके अंडे खा जाती। रखवाली का कोई ठीक प्रबंध न बन पड़ा तो कबूतरों ने दूसरी चिड़ियों से बचाव का उपाय पूछा। उन्होंने कहा कि पेड़ पर घोंसला बनाने के अलावा और कोई चारा नहीं।

कबूतर ने घोंसला बनाया, पर वह ठीक तरह बन न सका। आखिर उसने तय किया कि दूसरी चिड़ियों की सहायता से घोंसला बनाने का काम पूरा किया जाए।

चिड़ियों को बुलाया तो वे खुशी खुशी आई और कबूतर को अच्छा घोंसला बनाना सिखाने लगीं। अभी बनना शुरू ही हुआ था कि कबूतर ने कहा-“ऐसा बनाना तो हमें आता है, यों तो हमीं बना लेंगे।” चिड़ियाँ वापस चली गई।

ने कबूतर ने बहुत कोशिश की, पर घोंसला ठीक से नहीं बना। वह फिर चिड़ियों के पास गया। खीजती हुई वे फिर आई और तिनके ठीक तरह सजाना सिखाने लगीं। आधा भी काम पूरा न हो पाया था कि कबूतर उचका। उसने कहा- “ऐसे तो मैं जानता ही हूँ।”

चिड़ियाँ वापस चली गई। कबूतर लगा रहा, पर वह बना फिर भी न सका। चिड़ियों के पास फिर पहुँचा तो उन्होंने इनकार कर दिया और कहा- “जो जानता कुछ नहीं और मानता है कि मैं सब कुछ जानता हूँ, ऐसे मूर्ख को कोई कुछ नहीं सिखा सकता।”

ना समझ कबूतर अपने ओछे अहंकार में किसी से कुछ न सीख सका और अभी तक उसका घोंसला अन्य चिड़ियों की अपेक्षा भोंड़ा ही बनता है।

साभारः- जनवरी, 2006, अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या - 25