Anger Negativity  क्रोध नकारात्मकता

Anger Negativity  क्रोध नकारात्मकता

एक पंडित जी गंगा जी में से स्नान करके निकल रहे थे कि उनका स्पर्श एक निम्न जाति के व्यक्ति से हो गया। स्पर्श होते ही उनको क्रोध आ गया और वे उसे जोर से डाँटने-डपटने लगे। उनका क्रोध इतना बढ़ गया कि उन्होंने उस व्यक्ति को दो छड़ियाँ भी जमा दीं और यह कहते हुए दोबारा स्नान करने चले गए कि इस व्यक्ति ने मुझे अपवित्र कर दिया है। नहाते समय उन्होंने देखा कि वह व्यक्ति भी स्नान कर रहा है। उसे स्नान करते देख उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने उससे पूछा- “मैं तो तुम्हारे से स्पर्श होने के कारण दोबारा स्नान करने गया था, लेकिन तुम क्यों नहाने गए ?'' वह बोला – “पंडित जी ! मानवमात्र तो एक समान हैं, जाति से पवित्रता तय नहीं होती, लेकिन सबसे अपवित्र तो क्रोध है तो जब आपके क्रोध ने मुझे स्पर्श किया तो उन नकारात्मक भावों से मुक्त होने के लिए मुझे गंगास्नान करना पड़ा।" यह सुनकर वे लज्जित हो गए व उनका जाति-अभिमान दूर हो गया

साभारः- सितंबर, 2016, अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या - 08