Dharma-Adharma धर्म-अधर्म

Dharma-Adharma धर्म-अधर्म

विचारों में तो सभी आदर्शवादी होते हैं। योग्य-अयोग्य का ज्ञान या पुण्य-पाप की अनुभूति तो मूर्ख और पापी को भी होती है, किंतु व्यावहारिक जीवन में हम उसे भूल जाते हैं। धर्म को जानते हुए भी उसमें प्रवृत्त नहीं होते हैं और अधर्म को जानते हुए भी उससे निवृत्त नहीं होते हैं। दुर्योधन ने यही बात भगवान श्रीकृष्ण से तब कही थी, जब वे शांतिदूत बनकर गए थे । अर्थात धर्म-अधर्म का विवेक सभी को रहता है, सभी उन बातों को जानते हैं। हम भी यदि उन्हीं बातों की कोरी चर्चा करते हुए घूमें तो कोई विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। जो दूसरों से कहना और करना है, उसे क्रियान्वित करने के लिए शुभारंभ अपने आप से ही करें और जो निश्चय किया है, उस पर दृढ़तापूर्वक आरूढ़ रहें ।

-परमपूज्य गुरुदेव

साभारः- सितंबर, 2016, अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या - 36