Delusion मोह  

Delusion मोह  

एक आम को पेड़ से बहुत मोह था। दूसरे तो पककर अन्यत्र चले गए। लोगों के काम आए और गुठली से नए पौधे बनकर बढ़ चले, पर वह मोहग्रस्त आम पत्तों की आड़ में छिप गया। छोड़कर जाने का उसका मन हुआ ही नहीं।

पेड़ पर न बौर रहा, न साथी। न कोयल की कूक न भौंरों का गुंजार। पत्ते भी उस एकाकी की अवज्ञा करने लगे।

छोड़ना ठीक या पकड़े रहना भला- -इस असमंजस का उससे कोई निराकरण न हो सका। संशय ने कीड़े की आकृति बनाई और उसके पेट में घुस गया।

कुछ दिन बाद देखा, वह आम नहीं रह गया था। कीड़े ने उसे भीतर से खोखला बनाया। धूप ने सुखाकर घिनौना बना दिया। हवा के झोंके ने स्थिति बदली और उसे कूड़े के ढेर ने अपने घर शरण दी।

साभारः- अगस्त, 2004, अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या -19