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Ekadashi एकादशी, पापाङ्कुशा एकादशी पंचक आरम्भ

Potter कुंभकार

Potter कुंभकार

कुंभकार ने परिश्रम किया, बरतन बनाए और खाना खाकर वहीं बरतनों के समीप सो गया। वहाँ से एक राहगीर गुजरा। उसने कुंभकार पर सहानुभूति दिखाते हुए कहा - "तुम जमीन पर सोते हो। तुम इतने अच्छे बरतन बनाते हो। इन्हें बाजार में बेचकर और अधिक धन कमाओ, बड़ा मकान बनाओ, खूब धन एकत्र कर बड़े आदमी बन जाओ ।”

कुंभकार ने कहा – “इससे क्या होगा?” उसने कहा- "फिर तुम्हें जमीन पर नहीं सोना पड़ेगा। नौकर-चाकर होंगे। हाथ से काम भी नहीं करना पड़ेगा ।” कुंभकार ने कहा – “ तब तो बड़ा आदमी बनना मुझे कतई पसंद नहीं, क्योंकि यदि मैं मेहनत न करूँगा, फिर तो मेरा यह जीवन मिट्टी से भी बदतर होगा। मिट्टी के तो बरतन भी बन जाते हैं, किंतु मेरे अकर्मण्य जीवन का मोल तो मिट्टी के इन बरतनों जितना भी नहीं होगा।” पथिक निरुत्तर हो चला गया।

साभारः- अगस्त, 2004, अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या -36