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Ekadashi एकादशी, पापाङ्कुशा एकादशी पंचक आरम्भ

Arrogance अहंकार

Arrogance अहंकार

"नन्हीं- सी चिनगारी। तुम भला मेरा क्या बिगाड़ सकती हो, देखती नहीं, मेरा आकार ही तुमसे हजार गुना बड़ा है, अभी तुम्हारे ऊपर केवल गिर पहूँ तो तुम्हारे अस्तित्व का पता भी न लगे।" दिनकों का ढेर अहंकारपूर्वक बोला।

चिनगारी बोली कुछ नहीं, चुपचाप ढेर के समीप जा पहुँची। तिनके उसकी आँच में भस्मसात् होने लगे। अग्नि की शक्ति ज्यों-ज्यों बढ़ी, तिनके जलकर नष्ट होते गए, देखते-देखते भीषण रूप से आग लग गई और सारा ढेर राख में परिवर्तित हो गया।

यह दृश्य देख रहे आचार्य ने अपने शिष्यों को बताया- "बालको ! जैसे आग की एक चिनगारी ने अपनी प्रखर शक्ति से तिनकों का ढेर खाक कर दिया। वैसे ही तेजस्वी और क्रियाशील एक व्यक्ति ही सैकड़ों बुरे लोगों से संघर्ष में विजयी हो जाता है।"

साभारः- अगस्त, 2004, अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या - 59