सरकार ने अनदेखी की तो देशव्यापी आन्दोलन करेंगे

- सरकार ने अनदेखी की तो देशव्यापी आन्दोलन करेंगे




हीरालाल चत्ता

सचिव, जम्मू-कश्मीर सहायता समिति

निर्वाचन के इन चार वर्षों के दौरान कश्मीरी पंडित समुदाय दयनीय अवस्था में जीवन जी रहा है। उनके पढ़े-लिखे युवकों का भविष्य अधर में है। दिनोंदिन बेरोजगारी बढ़ रही है। अभी तक १० हजार से अधिक बी.ए.,एम.ए. तथा अन्य व्यावसायिक उपाधियां प्राप्त विस्थापित युवक बेरोजगार हैं और ४००० युवक सरकारी नौकरियों के लिए आयु पार (ओवरेज) हो गए हैं। सरकार केवल कश्मीर के मुसलमानों के लिए विशेष भर्ती का आयोजन करवा रही है। यह आयोजन कर्मचारी चयन आयोग के द्वारा भी किया गया जिसमें आयोग की औपचारिकताओं को ताक पर रखकर नौकरियां दी जा रही हैं। लगभग ८००० कश्मीरी मुस्लिम युवकों को प्रदेश तथा केन्द्र के कार्यालयों में नौकरियां दी गईं। ४५० को तो रेलवे विभाग में ही नियुक्त किया गया जबकि लगभग २५००० दिहाड़ी मजदूरों को स्थाई कर दिया गया। इसके अतिरिक्त ६००० नियुक्तियां तो कश्मीर में केवल सरकारी शिक्षण संस्थानों में की गई। इन नियुक्तियों के दौरान कश्मीरी पंडित तथा जम्मू एवं लद्दाख के युवकों की उपेक्षा की गई।

सरकार ने गत दिनों ४० विस्थापित युवकों को नियुक्त कर उन्हें पुलवामा (कश्मीर ) के किसी विद्यालय में ज्वाइन' करने का आदेश जारी किया, जबकि सरकार जानती है कि घाटी की आतंकवादी परिस्थितियों के चलते ये युवक पुलवामा नहीं जा सकते। कश्मीरी पंडित समुदाय में विस्थापन के समय १३ हजार से अधिक सरकारी कर्मचारी थे और आगामी ४ वर्षों तक ४ हजार से अधिक कर्मचारी अवकाश प्राप्त हो जाएंगे।

गत चार वर्षों के दौरान एक भी विस्थापित विद्यार्थी एम.ए., एम. फिल; या पीएच-डी. की उपाधि प्राप्त नहीं कर सका। तीन वर्षीय स्नातक की उपाधि अब ६ वर्षों में भी पूरी नहीं हो पाती है।

कश्मीर विश्वविद्यालय के तत्त्वावधान में हो रही इन परीक्षाओं में मुस्लिम नौकरशाही के चलते विलम्ब किया जाता है। इसी कारण हमने सरकार से मांग की है कि जम्मू में कश्मीर विश्वविद्यालय की स्थापित उपशाखा को वे सभी अधिकार दिए जाएं जिससे विस्थापित विद्यार्थियों की समस्याओं का निबटारा जम्मू में हो सके। जम्मू में कश्मीरी विस्थापित विद्यार्थियों का भविष्य अंधकारमय होने के कारण १०वीं कक्षा को उत्तीर्ण कर विद्यार्थी आगे पढ़ने के लिए राज्य से बाहर चले जाते हैं। ४० प्रतिशत विद्यार्थी अभी तक प्रदेश छोड़ चुके हैं।

हमारी सरकार से मांग है कि कश्मीरी विस्थापित विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ न होने दिया जाए। बेरोजगार युवकों के लिए रोजगार प्रदान किए जाएं तथा विस्थापितों के लिए सरकारी नौकरियों में आयु सीमा के संदर्भ में विशेष छूट दी जाए। व्यापारिक वर्ग हेतु ऋण देने की व्यवस्था सुलभ की जाए। जम्मू में शिविरों में रह रहे विस्थापितों के लिए दो कमरे वाला क्वार्टर बनाया जाए तथा जो विस्थापित किराए के कमरों में रह रहे हैं उनके लिए भी अस्थायी आवास की व्यवस्था की जाए। जो एक कमरे वाली कोठरी सरकार ने विस्थापितों के लिए निर्माण करवाई है उनकी संरचना को कबूतरखाने' की संज्ञा दी जा सकती है।

केन्द्र सरकार से हमारी मांग है कि घाटी की स्थिति में शीघ्र सुधार लाए ताकि विस्थापित सम्मान एवं सुरक्षा के साथ अपने घरों को लौट सकें। अगर सरकार ने अविलम्ब विस्थपितों के अस्तित्व को बचाने हेतु, उचित कदम नहीं उठाया तो देश भर में ऑल स्टेट कश्मीरी पंडित कांफ्रेन्स, सहायता समिति तथा अन्य सहयोगी संगठन एक देशव्यापी आन्दोलन छेड़ देंगे, जिसके परिणामों के लिए केन्द्र सरकार पूर्णतः दोषी होगी। .

अस्वीकरण:

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साभार:-  हीरालाल चत्ता  एवम् 10 अप्रैल 1994 पाञ्चजन्य