​​​​​​​अपनी बात   कोशुर समाचार 1995

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अपनी बात   कोशुर समाचार 1995

चमन लाल सप्रू  सलाहकार संपादक

प्रिय पाठकगण,

नमस्कार,

निःसंदेह कश्मीरी भाषा से हमारी पहचान है। इसकी एक समान वर्तनी प्रयोग में लाने पर अनेक हितैषियों के पत्र / विचार बराबर आ रहे हैं। ऊधमपुर से श्री अर्जुनदेव मजबूर लिखते हैं- 'कलकता के कुछ सहयोगी कश्मीरी भाषा और साहित्य के बारे में एक सेमिनार करना चाहते हैं।' इसी प्रकार विश्वभारती फाऊंडेशन, नोयडा द्वारा गठित 'कश्मीरी अध्ययन केंद्र भी भारतीय भाषा संस्थान के सहयोग से चालू वित्त वर्ष में कश्मीरी भाषा की एक कार्यशाला तथा कश्मीरी भाषा प्रशिक्षण कक्षाएं आरंभ करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। ऐसे ही आयोजन जम्मू आदि स्थानों पर भी हो सकते है। विस्थापन ने हमारी परंपरा को बहुत बड़ा आघात पहुंचाया। इसलिए यह हमारा पुनीत कर्तव्य है कि हम अपनी परंपरा से जुड़े रहने के लिए इसके मूल अर्थात कश्मीरी भाषा को जीवित रखने हेतु इसको प्रेम, निष्ठा और परिश्रम से सींचे ताकि यह सूखने न पाए

श्री द्वारकानाथ मोजा, गांधीनगर जम्मू से लिखते हैं कि स्वर्गीय केशवभट्ट ने हमारी संस्कृति, हमारे कर्मका को अपने अनथक प्रयास से जीवित रखा। हमारे समाज ने उन्हें श्रद्धाजलि देने के लिए आज तक कुछ नहीं किया। कई महानुभाव जिनको उनकी महत्ता, उनके योगदान का ज्ञान है, उनकी स्मृति को अक्षुण्ण रखने के लिए प्रयत्नशील है। बिरादरी के किसी भी सज्जन के पास उनके बारे में कोई सामग्री उपलब्ध हो तो वह हमें उसका उपयोग करने में मदद करें। इस संदर्भ में सूचनार्थ निवेदन है कि इसी अंक में ज्योतिषी केशव भट्ट जी के कृतित्व और व्यक्तित्व के बारे में एक लघु लेख प्रकाशित किया जा रहा है।

अलवर, राजस्थान से डा शिवनकृष्ण रैणा ने लिखा है कि हमारे देश की संतों एवं महापुरुषों की गौरवशाली परम्परा में कश्मीर की प्रसिद्ध संत कवयित्री देवी लल्लेश्वरी का नाम बड़े आदर के साथ लिया जा सकता है। कश्मीरी साहित्य में लल्लाद को वही स्थान प्राप्त है जो हिंदी में कबीर को है। दा रैणा भारत सरकार से अनुरोध करते हैं कि इस कालजयी कवयित्री की स्मृति में श्रद्धांजलि स्वरूप एक डाक टिकट जारी करे। संत परंपरा और भाईचारे की भावना में विश्वास रखने वाले अनुयायियों के लिए यह सप्रेरणा का काम करेगा।" हम डा रैणा के विचार से सहमत होते हुए एक कदम आगे बढ़कर दिल्ली सरकार से भी अनुरोध करते है कि दिल्ली की एक सड़क का नाम लल्लेश्वरी पर रखा जाए और उनकी एक प्रेरणादायी भव्यमूर्ति किसी आकर्षक स्थान पर स्थापित करके दिल्ली में रहने वाले लगभग एक लाख प्रबुद्ध कश्मीरियों की भावनाओं की कद्र करे। आशा है दिल्ली वासी कश्मीरी इस संबंध में सजग होंगे।

 

शुभकामनाओं के साथ आपका   चमन लाल सप्रू  सलाहकार संपादक

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साभारः चमन लाल सप्रू  सलाहकार संपादक एवम्  जून 1995, कोशुर समाचार