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Ekadashi एकादशी, पापाङ्कुशा एकादशी पंचक आरम्भ

मनि भाजन मधु पार ईत्र वूरन अभी निहारि।

मनि भाजन मधु पार ईत्र वूरन अभी निहारि।



मनि भाजन मधु पार ईत्र वूरन अभी निहारि।

का छांड़िअ का संग्रहिअ, कहउ बिबेक बिचारि।।

                                          तुलसीदास

शराब से भरे मणिमय पात्रा और अमृत से पूर्ण मिटी के बर्तन को देखकर विवेकपूर्वक विचार कर बताएं कि इनमें किसका त्याग करना चाहिए और किसका ग्रहण  तात्पर्य है कि उतम वस्तु सामान्य स्थान में हो तो भी उसे लेना चाहिए, परंतु बुरी वस्तु उतम स्थान में हो तो उसका त्याग ही करना चाहिए।