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Ekadashi एकादशी, पापाङ्कुशा एकादशी पंचक आरम्भ

सुनिअ सुधा देखअहि गरलु, सब करतूति कराल।

सुनिअ सुधा देखअहि गरलु, सब करतूति कराल।



सुनिअ सुधा देखअहि गरलु, सब करतूति कराल।

जहैं तहैं काक, उलूक, बक,  मानस सकृत मराल।।

                                                तुलसीदास

अमृत तो केवल सुनने में ही आता है, परंतु विष जहां-तहां प्रत्यक्ष देखा जाता है। विधाता के सभी कार्य विकराल हैं। कौए, उल्लू और बगुले सर्वत्र दिखाई देते हैं, परंतु हंस केवल मानसरोवर में ही मिलते हैं। भाव है कि दूसरों की बुराई करने वाले सर्वत्रा मिलते हैं, परंतु परहित में लगे हुए संत सत्संग में ही मिलते है।