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Ekadashi एकादशी, पापाङ्कुशा एकादशी पंचक आरम्भ

कबीर’ थोड़ा जीवना मांडै बहुत मंडान।

कबीर’ थोड़ा जीवना मांडै बहुत मंडान।



कबीर’ थोड़ा जीवना मांडै बहुत मंडान।

स्बही ऊमा मौत मुंह राव रंक सुल्तान ।।

                                          कबीर

अर्थ:- मनुषय को अपने जीवन की क्षणभंगुरता समझाकर जीना चाहिए। मनुष्य का जीवन तो थोड़ा - सा होता है परंतु वह प्रबंध बहुत दिनों का करता रहता है। सभी अंत में मौत के मुख के ग्रास बनते हैं। सिकंदर जैसे राजा भी जिसने सारे संसार में अपनी विजय का डंका बजाया  काल के पाश से मुक्त नहीे रह सके।